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शनिवार, 2 जुलाई 2011

BHRASHTACHAR AUR HUM.... JAI N VEERU



भ्रष्टाचार ....एक ऐसा ज़हर है जो कोई पीना नहीं चाहता मगर दूसरों को पिलाना सब चाहते हैं ..और पिला भी रहें हैं.
पिछले कुछ दिनों में भ्रष्टाचार को लेकर जो तमाशा अपने देश में हुआ है वो देखने लायक है और अगर हम जरा भी इमानारिदारी से सोचें तो हम पाएंगे के की आज भ्रष्टाचार के बारे में बोलना उस पर  बहस करना एक fashion बन गया है.
कोई बाबा रामदेव का समर्थन कर रहा है तो कोई अन्ना हजारे जी के सुर में सुर मिल रहा है तो कोई इन सबके विरुद्ध बोल रहा है .
मगर  यहाँ PAR  एक BAAT सोचने लायक है की जब हर  कोई भ्रष्टाचार के खिलाफ है तो ये SARE लोग एक मत kyun नहीं ???? वजह बिलकुल साफ़ है  ... क्यूंकि  आज हम जिस भ्रष्टाचार का रोना रो  रहे हैं वो हम सबने मिलके पैदा किया है. उसमे अकेले सरकार  का, या सिस्टम  का कुसूर  नहीं. इसके  लिए आम जनता भी उतनी ही दोषी है जितना की अन्य लोग.सोचने वाली बात ये है की ये नेता ,ये ऑफिसर , ये पुलिस... सब के सब जनता के बीच से ही बनते हैं. हम भ्रष्ट तो तब भी रहते हैं जब  हम आम जनता होते हैं बस फर्क ये है की यही जनता के बीच के लोग जब नेता , अफसर या पुलिस बनते हैं तो तो इनके पास  इतनी शक्ति आ जाती है की अपने अन्दर की दबे बेईमान इन्सान की इच्छाओं को पूरा करने की कोशिश करें. सुनने में अजीब भले ही लगे मगर सच यही है.
एक बेईमान, भ्रष्ट और चोर आदमी  भी इलेक्शन में जीत जाता  है इसलिए की की जनता ने वोटिंग  के समय धर्म और जाती  को ध्यान में रख के वोट किया. उस समय जनता की ईमानदारी कहाँ थी ?
आज जनता  भी भ्रष्टाचार को बढ़ावा दे रही है , डिग्री पाने में , नौकरी पाने में. ये जनता ही तो है तो फर्जी विकलांग प्रमाण  पत्र बनवाती   है, ये जनता ही तो है जो बिना टिकट के ट्रेन में सफ़र करती है. ये जनता ही तो है जो कटिया मार के बिजली जलती है. जनता के पास अगर इतना पैसा है की वो उसके बल पे पडोसी का हक़ मार सके, नौकरी पा सके तो जनता भ्रष्टाचार के खिलाफ नहीं. जनता को भ्रष्टाचार तब दीखता है जब कोई उससे ज्यादा पैसे वाले घूस के बल पर नौकरी पा लेता है.
अब आप लोग ये मत समझें की मै जनता के खिलफ बोल रहा हूँ . मै  खुद आम जनता हूँ  मगर मुझे पता है की ये जनता जो मोमबत्ती  मार्च में इतना शोर करती है, भ्रष्टाचार के विरुद्ध नारे लगाती है ये कितनी इमानदार है.

कोई भी नेता , अधिकारी , मंत्री , ये सब जनता के बीच के लोग तो होते हैं...जब आटा ही ख़राब हो तो उसकी चाहे रोटी बनाओ या पराठा वो भी ख़राब ही बनेगा. आज हम पौधों की जड़ में पानी देने के बजाय उसकी पत्तियों पर पानी डाल कर सींचने की कोशिश कर रहे हैं.
लोकपाल बिल बनना चाहिए .बहोत जरूरी है. मे अन्ना जी का समर्थन करता हूँ . LEKIN मुझे HANSI आती है लोगों की सोच पर जो लोकपाल बिल को कोई  जादू या चमत्कार  SAMAJH रहे हैं.
रैली में नारे लगा कर हम खुद को इमानदार जताने पर तुले हैं और रैली से लौटकर हम बेटे के DAKHILE के लिए घूस का इन्तेजाम कर रहे हैं. कुछ  लोग तो उस मोमबत्ती की उधारी भी नहीं चुकायेंगें जिसे लेकर वो भ्रष्टाचार के खिलाफ नारे लग रहे हैं. लेकिन नारे लगाकर हम अपनी आत्मा को संतुष्ट कर लेते HAIN.
   आज हम भ्रष्टाचार के खिलफ ठीक उसी तरह लड़ रहे हैं जैसे CIGRATE तथा गुटके के पैकेट  पर ये लिख देते है " तम्बाकू खाना  स्वास्थ के लिए हानिकारक है" , और फिर उस पैकेट को  दुकानों पर सजाया जाता है बिकने के लिए... क्या तमाशा है...
आम जनता में कौन कौन से लोग आते हैं??? अध्यापक ? वकील ? धर्मे के ठेकेदार ?  या DOCTORS ???

होम एक्साम में  गुड मार्क्स के लिए बच्चों का कोचिंग पढना जरूरी ? ये  भ्रष्टाचार नहीं ?

सच तो ये है किम हम भ्रष्टाचार की जड़ तक पहुँच ही नहीं पा रहे , भ्रष्टाचार की असली वजह क्या है ? ... इसकी सबसे बड़ी वजह है हमारा नैतिक पतन. आज के भौतिकतावादी   युग में हमने पैसे को ही भगवन मान लिया है. बचपन से ही हम बच्चों  के मन में भर रहे हैं..की पैसा कमाओ चाहे जैसे. हमने ज़िन्दगी का मकसद ही बस खाओ पियों और मौज करो बना लिया है. आज हमरे देश के बाबा जो हमें वैराग्य और त्याग सिखाते हैं वो AC गाड़ियों में ही चलते हैं. और हमने भी खुद धर्म को लड़ने का बस एक जरिया बना के रख दिया है. आज मंदिर और मस्जिद की गिनती जितनी बढ़ रही हैं हम इश्वर से उतना ही दूर क्यूँ होते जा रहे हैं ??? क्यूंकि हमारी भक्ति भी सिर्फ दुनिया को दिखने के लिए है...या पैसा कमाने के लिए है. और ये बात सभी धर्मों के लोगों पर सामान रूप से लागू होती है.
आप लोग खुद अपने दिल पर हाथ रख कर सोचिये भ्रष्टाचार को ख़त्म करने के लिए हमने नारे लगाने और दूसरों पर इल्जाम देने के अलावा और क्या किया...?????
क्या हम वास्तव में भ्रष्टाचार  के खिलाफ हैं  ???
क्या हम अपने फायदे के लिए भ्रष्टाचार को बढ़ावा नहीं देते  ???

                                     सच तो ये है की हम अपनी ही परछाईं से लड़ रहे है ...