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रविवार, 11 दिसंबर 2011

Difference Between "KARM" and "KARMKAND"

अपने पुराने ब्लॉग में लिखा था की ईशवर और धर्म में क्या अंतर है. जब हम केवल धर्म को सोचते हैं तब शायद ईशवर को भी खो देते हैं क्यूंकि धर्म में लोग सुविधानुसार परिवर्तन करते रहते हैं.
फ़िलहाल मेरा आज का विषय है "कर्म तथा कमर्काण्ड में अंतर   " . साधारण रूपसे सोचते पर हमें लगता है की कर्मकांड का अर्थ ही धरम अर्थवा कर्म होता है. हाँ ये बात सही है की धरम का अनुसरण करने के लिए हमें कुच्छ कर्मकांड करने होते है, परन्तु हम ये बात भूल जाते हैं की कर्मकांड किसी अच्छे परिणाम के लिए बनाये जाते थे. अगर कोई कर्मकांड आज के परिवेश में उचित नहीं तो उसे त्याग देना ही बेहतर होगा, लेकिन लोगों ने पैसे के लालच में कर्मकांड को ही धर्म करार दिया है. 
कोई भी धर्म हो- हिन्दू , मुस्लिम, सिख, जैन या कोई और, सभी धर्मों में हम अगर gahrai में जायेंगे तो हम ये पाएंगे की कोई भी कर्मकांड के पीछे एक अच्चा मकसद होता था. कोई कर्मकांड करने से हमर मन सुद्ध होता था. परन्तु आज us कर्मकांड के मकसद को भुलाकर हम बस उसे
फ़र्ज़ मान करकर करते हैं.
उदाहरण के लिए मुस्लिम  धर्म में क़ुरबानी का बहोत मत्तव है, जो इस बात को दर्शाता  है की अल्लाह को मान  ने WALA अल्लाह की वास्ते अपनी सबसे प्यारी  को भी कुर्बान कर सकता है. और  ये परम्परा सारे  संसार में मनाई जाती है जिसमे बकरे की क़ुरबानी करके उसके तीन हिस्से किये जाते हैं जिसमे से एक hissa खुद अपने लिए, एक hissa रिश्तेदार और doston के लिए तथा teesra hissa गरीबों में baantne के लिए होता है. लेकिन हम ये भूल जाते हैं इस असली मकसद क्या है..असली मकसद ये है अल्लाह चाहता है की हम उसके नादों का भी ख्याल रखें  जिसमे हमारे रिश्तेदार, दोस्त तथा गरीब लोग भी आते हैं. वो आपसे से बकरा नहीं मांगता . लेकिन लोगों को लगता है की क़ुरबानी के दो दिन पहले दो लाख का बकरा लेकर उसकी क़ुरबानी करने से अल्लाह खुश हो जायेगा. हरगिज़ नहीं, क्यूंकि आप गरीबों को तो दूर से भगा देते हो. आप समाज में अपनी  वाह वाही   के लिए लाख रुपये का बकरा खरीदते हो मगर  आप किसी भी मौके पर गरीबों की दिल से madad नहीं करते ,आप AMEERON  के बीच तो लुटाते  हो मगर गरीब को एक रुपया देने में jaan जाती है. अल्लाह jayada खुश होगा अगर आप गरीब को एक बकरी दान कर दोगे. मगर aapne तो quraan को rata है उसकी baton को na samjha है na तो अपने jeewan में utara है. आप रोज़ा रखते हो, रखना चाहिए, फ़र्ज़ है, मगर एक महीने रोज़ा रखने के बाद भी आपको अगर गरीबों और bhookhon की तकलीफ नहीं महसूस होती तो क्या फायदा. रोज़ा रखने के बाद भी आप झूठ, फरेब,बुरे , गन्दी आदतों से नहीं बचते तो आपका रोज़ा अल्लाह नहीं मानेगा. कुरान को गौर से समझो उसने भूखा रहने को रोज़ा नहीं कहा है. रोज़ा का मतलब बुरे से परहेज़, अगर बुरे नहीं छोड़ सकते तो भूखा   रहने को अल्लाह ne खुद मना  किया है.
हुज़ आपको इस बात का मौका देता है की अगर आप दिल से माफ़ी मांगना कहते है, बुरे को वास्तव में छोड़ना चाहते हैं तो अल्लाह आपको तौबा करने का मौका देता है. मगर यहाँ लोग हज करने बाद दुनिया की तिकड़म और जालसाजी में जुटे रहतें हैं, शायद उन्हें लगता है हज में जाने का मतलब ही gunah माफ़ हो जाना है. काश वो समझते की अगर आपके मन में बुरे है तो आपका हज भी नहीं मन जायेगा. लोग dadhi रखा के समझते हैं की अल्लाह के करीब हैं, वो shaayad भूल जाते हैं की अल्लाह को

अब अगर हिन्दुओं की बात करें तो वहां भी यही कहानी . किसी भी मंदिर में जाओ वहां नारियल, लड्डू सबका का प्रसाद चढाया जायेगा.  शायद हम भूल जाते हैं भगवन को ये sab kuchh नहीं चाहिए . आप बस उसके बन्दों की सेवा करो गरीबों की मदद करो, वो ज्यादा बेहतर है. मंदिर या मस्जिद एक ऐसा स्थान होता है जहाँ हम सुकून से ऊपर वाले को yaad कर सकें.   हर मौके पर डी.J. लगाकर डांस करने से भगवन नहीं खुश होगा. हमे जब भी मौका मिलता है  एक नया भगवन  गढ़ लेते हैं. हम चीजों को भगवान्  बना देते हैं.

सोचने वाली बात ये है की अगर हम हमेश चाँद और सूरज को भवन मानकर उसकी ही पूजा करते रहते तो क्या चाँद पर पहुँचने की बात सोची जा सकती थी. आज हमें पता है की चाँद एक उपग्रह है.अगर इंसान अपनी कोशिश न करता तो आज क्या चाँद पर उसके कदम पड़ते ? कभी नहीं ?
लेकिन हम शायद भगवन को भी बेवक़ूफ़ बनाए की कोशिश करते रहते हैं. हमें लगता है की इंसानों  का दिल दुखाकर अगर हम भगवान् की पूजा करेंगे  तो वो खुश हो जायेगा. चाहे गीता हो या कुरान सबन यही कहा है की भगवान आपकी भावनाओं को देखता है कर्मकांडों को नहीं. मगर लोगों ने पैसा कमाने के चक्कर में साडी मानवता को गुमराह किया. कोई अपनी पूजा करवाना चाहता ही तो कोई अपना महल खड़ा करना चाहता है. और वो बहोत सारे आडम्बर बनाकर हमें बेवकूफ बना रहे हैं...  
हम आज भी बिल्ली के रास्ता काटने पर काम का बनना या बिगड़ना तय करते हैं, शायद हमें हमें ओने कर्मों और भगवान पर कम भरोसा है...ये मेरी अपनी निजी सोच है अगर आप में से किसी को मेरी बात बुरी लेगे तो मुझे क्षमा करियेगा...