कुल पेज दृश्य

शुक्रवार, 26 अप्रैल 2013

Facebook or Fakebook....?????

आज के युग में सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट ज़रूररत से जयादा फैशन बन गया है. कभी मुझे या और लोगों को भी लगता था की सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट अपने अपने फ्रेंड्स , रिलेटिव्स , परिवारजनों से जुड़े रहने का एक शशक्त माध्यम होने के साथ साथ पूरी दुनिया के लोगों के  विचारों का  आदान प्रदान करने का एक साधन भी है. यधपि आज भी इसकी इस उपयोगिता से हम इन कर नहीं कर सकते , परन्तु आज फेसबुक जैसी साइट्स का प्रयोग कुछ और कार्यों के लिए कुछ ज्यादा ही हो रहा है।

आज अगर हम फेसबुक को फेकबुक  कहें तो अतिश्योक्ति न होगी .आज फेसबुक का प्रयोग हमरे समाज को तोड़ने, हमारी फीलिंग्स के साथ खिलवाड़ करने , हमारे यक्तिगत डाटा को व्यावसायिक रूप से प्रयोग करने तथा राजनैतिक हितों के लिए ज्यादा हो रहा है.
आज राजनितिक पार्टियाँ अपने यक्तिगत हितों के लिए फेसबुक पर ऐसी बातें प्रचारित करती हैं जो उनके व्यग्तिगत हितों को तो साधता है परन्तु वो हमारे समाज के लिए उन सामग्रियों का क्या गलत प्रभाव पड़ेगा इसकी चिंता शायद किसी को नही .
 आज विभिन्न राजनितिक दल बहोत सरे  ऐतिहासिक तथ्यों को तोड़ मरोड़ कर परोस रहे हैन. या तो गलत सामग्रियों को परोस रहे है.
विभिन्न धर्मो से सम्बंधित लोग भी सम्बंधित पेज अथवा ग्रुप के माध्यम  से ऐसी ही सामग्रियों को बिना जांच के लाइक तथा शेयर करते रहते है। उन्हें तो शायद ये पता भी नहीं की वो तो कुछ विशेष लोगों की साजिश का हिस्सा भर हैं . जाने अनजाने वो भी एक साजिश का हिस्सा बनते है। सबसे बड़ी बात तो ये की ऐसा करके उन्हें लगता है की वो अच्छा कार्य कर रहे है .  आज मीडिया हमारे ऊपर इस कदर हावी हो चूका है की आज फेस तो फेस कोई बात कहने से जयादा महत्वपूर्ण हो गया है बातों को फेसबुक पर शेयर करना .


मंदिर या मस्जिद जाने का वक़्त शायद किसी के पास नहीं मगर फेसबुक पर सब नमाज़ भी पढ़ लेंगें और प्रसाद वितरण भी कर लेंगें। हाँ आप कहेंगे कि इसमें हर्ज़ क्या है…. ? है, हम जाने अनजाने एक ऐसी दुनिया में प्रवेश कर रहे है जहाँ हम हकीकत से जयादा बनावटी चीजों को वरीयता देना शुरू कर रहे हैं .
मुझे तो उस वक़्त बहोत  अफ़सोस  हुआ जब  मै अपने एक दोस्त के घर उस जन्मदिन की बधाई देने गय.उसे शायद इस बात की ख़ुशी कम हुयी की मै फिजिकली उसके सामने था मगर उसे इस बात का अफ़सोस था की मैंने उसे फेसबुक पर पोस्ट के ज़रिये बधाई नहीं दिया .इसे आप क्या कहेंगे ???
  मै फेसबुक के खिलाफ नहीं मगर आज फेसबुक जिस तरीके से प्रयोग किया जा रहा है उसे के ज़रूर खिलाफ हूँ .

फेस बुक पर बहोत दिनों से एक न्यूज़ प्रसारित हो की की UNESCO भारतीय राष्ट्र गान को "Jana Gana Mana" को  best in the world. का  अवार्ड दिया है .
आश्चर्य  की बात है की तमाम पढ़े लिखे लोगों को भी शायद यह नहीं पता की UNESCO आखिर काम क्या करता है. इस अफवाह को बहोत सारे प्रोफेसर , अध्यापक या ऐसे ही बुद्धिजीवी वर्ग के लोग फेस बुक पर शेयर कर रहे हैं .
किसी भी राष्ट्र को अपने राष्ट्र गान पर गर्व होना चहिये. हमें भी है. और हम इसके लिए किस एवार्ड के मोहताज़ भी नहीं होना चहिये. अगर वास्तव में मिले टॉम अच्छा भी है मगर अफवाहों में बहना ठीक नहीं .


सही जानकारी के लिए क्लिक करे
 http://indiatoday.intoday.in/story/%27India+anthem%27+email+false:+Unesco/1/16449.html
 (Detailed Analysis
According to this story, UNESCO (United Nations Educational, Scientific and Cultural Organization), has announced that the Indian National Anthem is the best in the world.



Indian Flag
Claims that UNESCO has chosen the Indian National Anthem as the best in the world appear to be unfounded
The story is currently circulating via email, and has also been posted to many blogs and forums, especially those that target an Indian audience.

However, I could not find any evidence whatsoever that confirms the rather fanciful claim in the message. There is nothing about such an announcement on the UNESCO website, nor are there any credible news reports that back up the claim in any way. If such an announcement was true, it seems very likely that it would have been widely reported - and one would suspect, hotly debated - in media outlets both in India and around the world.

Thus, it seems apparent that the story is no more than another pointless Internet rumour with no basis in fact.

As its name suggests, UNESCO conducts very important work on an international scale in the spheres of education, science and culture. Therefore, it seems extremely unlikely that UNESCO would waste its valuable time and resources on the rather frivolous, and ultimately meaningless, exercise of nominating the world's best national anthem.)

बात यही पर ख़त्म नहीं होती सारी  राजनितिक चाहे कांग्रेस हो या बीजेपी या कोई और किसी भी दंगे की तस्वीरों को फोटोशॉप पर एडिट करके अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करते हैं .
 अभी कुछ ही दिन पहले कांग्रेस ने एक वेबसाइट पर कुछ पुरानी फोटो का प्रयोग किया था जो की गलत था .
 चाहे हिन्दू  हों या मुस्लिम या कोई और सबने अपना अपने ग्रुप बनाया हुआ है और वो सब अपने आप को सही साबित करने के लिए ऐतिहासिक तथ्यों को तोड़ मरोड़ कर पेश कर रहे हैं .

नीचे कुछ ऐसी तस्वीरें है जो सच में रूप में पेश की गयी जबकि ये सब फोटोशोप पर एडिट करके बनायीं गयी है .
America Ferrara on the cover of Glamour, Sept. 2007. Sources claim her head was cut and pasted onto another woman’s body for the shoot.








Having learned from those two blunders, the Iranians seem to have learned not to put an extra plane into their photo and also learned the very important lesson not to take someone else's picture and just edit out windmills. And props to using Mount Damavand — that's a local landmark.
So this is slightly embarrassing for anyone in their defense department, sure. But they're still defending every last report, and calling out the Western media for... our Photoshop sleuthing skills?





शुक्रवार, 5 अप्रैल 2013

The Truth...

मत पूछो इस दुनिया में मैंने क्या क्या देखा देखा है,
रावण की इस नगरी में राम को जलते देखा है,


रिश्तों के देखे बाज़ार ममता को बिकते देखा है ,
झूट के आगे मैंने अक्सर सच को ही झुकते देखा है

और कहूं क्या इससे ज्यादा  मैंने क्या क्या देखा है,
मुर्दों की इस बस्ती में जिन्दों को जलते देखा है

कोई किसी का नहीं यहाँ पर कैसे दुश्मन कैसे दोस्त
मतलब के सांचे में बस रिश्तों को ढलते देखा है

                                                              by : Ansar