मत पूछो इस दुनिया में मैंने क्या क्या देखा देखा है,
रावण की इस नगरी में राम को जलते देखा है,
रिश्तों के देखे बाज़ार ममता को बिकते देखा है ,
झूट के आगे मैंने अक्सर सच को ही झुकते देखा है
और कहूं क्या इससे ज्यादा मैंने क्या क्या देखा है,
मुर्दों की इस बस्ती में जिन्दों को जलते देखा है
कोई किसी का नहीं यहाँ पर कैसे दुश्मन कैसे दोस्त
मतलब के सांचे में बस रिश्तों को ढलते देखा है
by : Ansar
रावण की इस नगरी में राम को जलते देखा है,
रिश्तों के देखे बाज़ार ममता को बिकते देखा है ,
झूट के आगे मैंने अक्सर सच को ही झुकते देखा है
और कहूं क्या इससे ज्यादा मैंने क्या क्या देखा है,
मुर्दों की इस बस्ती में जिन्दों को जलते देखा है
कोई किसी का नहीं यहाँ पर कैसे दुश्मन कैसे दोस्त
मतलब के सांचे में बस रिश्तों को ढलते देखा है
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