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शुक्रवार, 26 अप्रैल 2013

Facebook or Fakebook....?????

आज के युग में सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट ज़रूररत से जयादा फैशन बन गया है. कभी मुझे या और लोगों को भी लगता था की सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट अपने अपने फ्रेंड्स , रिलेटिव्स , परिवारजनों से जुड़े रहने का एक शशक्त माध्यम होने के साथ साथ पूरी दुनिया के लोगों के  विचारों का  आदान प्रदान करने का एक साधन भी है. यधपि आज भी इसकी इस उपयोगिता से हम इन कर नहीं कर सकते , परन्तु आज फेसबुक जैसी साइट्स का प्रयोग कुछ और कार्यों के लिए कुछ ज्यादा ही हो रहा है।

आज अगर हम फेसबुक को फेकबुक  कहें तो अतिश्योक्ति न होगी .आज फेसबुक का प्रयोग हमरे समाज को तोड़ने, हमारी फीलिंग्स के साथ खिलवाड़ करने , हमारे यक्तिगत डाटा को व्यावसायिक रूप से प्रयोग करने तथा राजनैतिक हितों के लिए ज्यादा हो रहा है.
आज राजनितिक पार्टियाँ अपने यक्तिगत हितों के लिए फेसबुक पर ऐसी बातें प्रचारित करती हैं जो उनके व्यग्तिगत हितों को तो साधता है परन्तु वो हमारे समाज के लिए उन सामग्रियों का क्या गलत प्रभाव पड़ेगा इसकी चिंता शायद किसी को नही .
 आज विभिन्न राजनितिक दल बहोत सरे  ऐतिहासिक तथ्यों को तोड़ मरोड़ कर परोस रहे हैन. या तो गलत सामग्रियों को परोस रहे है.
विभिन्न धर्मो से सम्बंधित लोग भी सम्बंधित पेज अथवा ग्रुप के माध्यम  से ऐसी ही सामग्रियों को बिना जांच के लाइक तथा शेयर करते रहते है। उन्हें तो शायद ये पता भी नहीं की वो तो कुछ विशेष लोगों की साजिश का हिस्सा भर हैं . जाने अनजाने वो भी एक साजिश का हिस्सा बनते है। सबसे बड़ी बात तो ये की ऐसा करके उन्हें लगता है की वो अच्छा कार्य कर रहे है .  आज मीडिया हमारे ऊपर इस कदर हावी हो चूका है की आज फेस तो फेस कोई बात कहने से जयादा महत्वपूर्ण हो गया है बातों को फेसबुक पर शेयर करना .


मंदिर या मस्जिद जाने का वक़्त शायद किसी के पास नहीं मगर फेसबुक पर सब नमाज़ भी पढ़ लेंगें और प्रसाद वितरण भी कर लेंगें। हाँ आप कहेंगे कि इसमें हर्ज़ क्या है…. ? है, हम जाने अनजाने एक ऐसी दुनिया में प्रवेश कर रहे है जहाँ हम हकीकत से जयादा बनावटी चीजों को वरीयता देना शुरू कर रहे हैं .
मुझे तो उस वक़्त बहोत  अफ़सोस  हुआ जब  मै अपने एक दोस्त के घर उस जन्मदिन की बधाई देने गय.उसे शायद इस बात की ख़ुशी कम हुयी की मै फिजिकली उसके सामने था मगर उसे इस बात का अफ़सोस था की मैंने उसे फेसबुक पर पोस्ट के ज़रिये बधाई नहीं दिया .इसे आप क्या कहेंगे ???
  मै फेसबुक के खिलाफ नहीं मगर आज फेसबुक जिस तरीके से प्रयोग किया जा रहा है उसे के ज़रूर खिलाफ हूँ .

फेस बुक पर बहोत दिनों से एक न्यूज़ प्रसारित हो की की UNESCO भारतीय राष्ट्र गान को "Jana Gana Mana" को  best in the world. का  अवार्ड दिया है .
आश्चर्य  की बात है की तमाम पढ़े लिखे लोगों को भी शायद यह नहीं पता की UNESCO आखिर काम क्या करता है. इस अफवाह को बहोत सारे प्रोफेसर , अध्यापक या ऐसे ही बुद्धिजीवी वर्ग के लोग फेस बुक पर शेयर कर रहे हैं .
किसी भी राष्ट्र को अपने राष्ट्र गान पर गर्व होना चहिये. हमें भी है. और हम इसके लिए किस एवार्ड के मोहताज़ भी नहीं होना चहिये. अगर वास्तव में मिले टॉम अच्छा भी है मगर अफवाहों में बहना ठीक नहीं .


सही जानकारी के लिए क्लिक करे
 http://indiatoday.intoday.in/story/%27India+anthem%27+email+false:+Unesco/1/16449.html
 (Detailed Analysis
According to this story, UNESCO (United Nations Educational, Scientific and Cultural Organization), has announced that the Indian National Anthem is the best in the world.



Indian Flag
Claims that UNESCO has chosen the Indian National Anthem as the best in the world appear to be unfounded
The story is currently circulating via email, and has also been posted to many blogs and forums, especially those that target an Indian audience.

However, I could not find any evidence whatsoever that confirms the rather fanciful claim in the message. There is nothing about such an announcement on the UNESCO website, nor are there any credible news reports that back up the claim in any way. If such an announcement was true, it seems very likely that it would have been widely reported - and one would suspect, hotly debated - in media outlets both in India and around the world.

Thus, it seems apparent that the story is no more than another pointless Internet rumour with no basis in fact.

As its name suggests, UNESCO conducts very important work on an international scale in the spheres of education, science and culture. Therefore, it seems extremely unlikely that UNESCO would waste its valuable time and resources on the rather frivolous, and ultimately meaningless, exercise of nominating the world's best national anthem.)

बात यही पर ख़त्म नहीं होती सारी  राजनितिक चाहे कांग्रेस हो या बीजेपी या कोई और किसी भी दंगे की तस्वीरों को फोटोशॉप पर एडिट करके अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करते हैं .
 अभी कुछ ही दिन पहले कांग्रेस ने एक वेबसाइट पर कुछ पुरानी फोटो का प्रयोग किया था जो की गलत था .
 चाहे हिन्दू  हों या मुस्लिम या कोई और सबने अपना अपने ग्रुप बनाया हुआ है और वो सब अपने आप को सही साबित करने के लिए ऐतिहासिक तथ्यों को तोड़ मरोड़ कर पेश कर रहे हैं .

नीचे कुछ ऐसी तस्वीरें है जो सच में रूप में पेश की गयी जबकि ये सब फोटोशोप पर एडिट करके बनायीं गयी है .
America Ferrara on the cover of Glamour, Sept. 2007. Sources claim her head was cut and pasted onto another woman’s body for the shoot.








Having learned from those two blunders, the Iranians seem to have learned not to put an extra plane into their photo and also learned the very important lesson not to take someone else's picture and just edit out windmills. And props to using Mount Damavand — that's a local landmark.
So this is slightly embarrassing for anyone in their defense department, sure. But they're still defending every last report, and calling out the Western media for... our Photoshop sleuthing skills?





शुक्रवार, 5 अप्रैल 2013

The Truth...

मत पूछो इस दुनिया में मैंने क्या क्या देखा देखा है,
रावण की इस नगरी में राम को जलते देखा है,


रिश्तों के देखे बाज़ार ममता को बिकते देखा है ,
झूट के आगे मैंने अक्सर सच को ही झुकते देखा है

और कहूं क्या इससे ज्यादा  मैंने क्या क्या देखा है,
मुर्दों की इस बस्ती में जिन्दों को जलते देखा है

कोई किसी का नहीं यहाँ पर कैसे दुश्मन कैसे दोस्त
मतलब के सांचे में बस रिश्तों को ढलते देखा है

                                                              by : Ansar
 

शनिवार, 29 दिसंबर 2012

I AM VERY SAD....

आज फिर एक लड़की हमारी गन्दी मानसिकता का शिकार हो गयी। एक जान आज और चली गयी। पूरे देश को अफ़सोस  है, पूरा देश सदमे में है।
आज मैंने जब न्यूज़ पेपर पढ़ा तो 6 अलग अलग जगह पर रेप केस . दिल्ली में इतना बवाल हो रहा है . उन शैतानों को फंसी देने की बात हो रही है , उसके बाद भी कुछ लोग  वही हरकत दोहराए जा रहे हैं। ऐसे लोगों को सुधारने  की कोई ज़रुरत नहीं। हमारे देश की ,आबादी में अगर ऐसे दरिंदों की एक बड़ी भीड़  कम हो जाये तो कोई दिक्कत की बात नहीं।
 मगर सोचने वाली बात ये है की क्या सिर्फ फांसी देकर हम ऐसे अपराध को रोक सकते है ????
 नहीं---------  हमें कुछ  और भी समझना पड़ेगा।।। और समझने के लिए हमें एक होना पड़ेगा।।।
मगर------

हम या तो हर बात का राजनीतीकारण कर देते हैं या कुछ दिन रैली निकाल कर खामोश हो जाते हैं।
हम कभी भी एक नहीं हो सकते . हम दिखावा करते हैं एक होने का . मगर जब भी मौका मिलता है हम जाता जाते हैं की शायद हमारा " हम" बने रहना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है। हम कोई भी मौका नहीं छोड़ते ये जताने के लिए की हम कितने अलग हैं एक दूसरे से . मगर कुछ बातें हैं जहाँ पर हम एक जैसे हैं। वो है हर बात के दूसरों को इल्जाम देना, हर बात पर ये जताने की पूरी गलती बस अगले की, बस ये जताना  की एक को सुधरने से सब सुधर जायेगा। हम सुबह खुद किसी को घूस देकर आते हैं और शाम को करप्शन का रोना रोते हैं।  शायद हम कभी इस बात को समझ नहीं सकते या समझते नहीं चाहते की जिन बुराइयों और समस्याओं का हम रोना रोते हैं उन सब में हमारी भी सहभागिता है और सुधरने की ज़रुरत सबको है।






   आज कोई भी समस्या हो जाती हैं तो हम एक दुसरे को जिमीदार बता रहे हैं।
   अख़बार उठा कर देखेंगें तो पाएंगे लड़कियों को छेड़ना , बदसलूकी करना , उनकी ज़िन्दगी मौत से बदतर कर लेना एक . जिस लड़की के साथ छेड़खानी हुयी उसकी तो ज़िन्दगी ख़राब। ऐसा दुबारा न हो उसके लिए हमारे पास कोई ठोस कदम उठाने को नहीं नहीं, हाँ सबको मौका मिल गया। चाहे मीडिया हो , चाहे सरकार  और चाहे जनता  हम आम आदमी कहते हैं।
तमाशा देखिये- सरकार को लगता हैं सारी मानवता बस शैतानों पर दिखाना ही कानून है। ऐसे हैवानों को फांसी देने में इतनी हिचक क्यूँ ? कु लोग होते ही इतने गंदे हैं की उन्हें दुबारा मौका ही नहीं देना चाहिए।
   मगर दूसरा पहलु ये भी है की हम  रोज़ लोगों को मरते देखते हैं मगर क्या हम पाप करना छोड़ देते हैं की एक दिन तो मर जायेंगे तो भागवान  पापों की सजा देगा । सिगेरट के पैकेट पर चेतवानी देखकर क्या हम सिगेरट पीना छोड़ देते हैं ? तो क्या करें? सिंपल सिगेरट पर ban लगा दो। उनकी मैन्युफैक्चरिंग  बंद कर दिया जाये।
 मतलब ये सिर्फ फांसी देने भर से काम नहीं बनेगा।(लेकिन जो गुनाहगार हैं उन्हें तो फंसी मिलनी ही चाहिए).
  हमें ये इन्तेजाम करना होगा की लोग मानसिकता इतनी गन्दी और दरिंदगी बहरी न होने पाए।
हम कितनी आसानी से सारा इल्जाम पुलिस और सरकार  पर मढ़कर खुद सुकून दे लेते हैं। सोचिये ये दरिन्दे कौन हैं ? हमारे आपके बीच के ही लोग हैं। ये दरिंदगी हर जगह फ़ैल चुकी है चाहे शहर  हो चाहे गाँव .
 वजह वही है जिसे हम मानने को तैयार नहीं। आज की लाइफ स्टाइल,  हमारी फिल्मे , और हमारी दोहरी और भौतिकतावादी मानसिकता। टीवी पर प्रचार चाहे जिस प्रोडक्ट का आये मगर उसमे कम कपडे पहने लड़की का होना ज़रूरी है। आधुनिकता के नाम पर हम किसी भी तरह की फिल्म बना डालते हैं और अफसोस ये की सेंसर बोर्ड उसे पास भी कर देता है। ये हमारी मानसिकता को ही दिखाते हैं।  हम जाने अनजाने इस दिखावे की आधुनिकता को ओढ़ रहे हैं और परिणाम  सबके सामने हैं। हम सबने  मिलकर एक गंदे समाज की रचना कर रहे हैं।
आज लड़कियों को हमने  घर और बाहर दोनों की जिम्मेदारी दे दिया है। उसे घर की चारदीवारी से निकल कर ऑफिस में बैठा दिया है। सच तो ये है की हमने लड़कियों को बेवकूफ बनाया। हम हर तरीके  से उनका दोहन कर रह हैं। दिक्कत ये है की लड़कियों को भी लगता है की वो आधुनिक युग की नारी  बन रही हैं।
    शायद लोगों को लगता है की घर और बच्चे संभलना छोटा काम है, औरत अगर घर और परिवार की जिम्मेदारी संभाले तो वो तुच्छ है। परिवार में संस्कार डालना माँ का काम। मगर आज की नारी को भी माँ के रोल से जायदा मॉडल बनना पसंद .

एक बात कहने में मुझे ज़रा भी हिचक नहीं की समाज हमेश से ही पुरुष प्रधान रहा है और महिलायों का हमेशा से शोषण हुआ है। हम चाहे जितना दावा करें  आधुनिकता का मगर हम आज भी वही हैं। लड़का और लड़की दोनों अलग हैं।लड़कियों को ये बात समझ लेनी चाहिए की अपनी कमज़ोर शारीरिक रचना के कारण उन्हें इस दिखावे के समाज में बचकर रहना चाहिए। हम चाहे जितना दावा कर लें मगर इस समाज में लड़कियों को हमेश खतरा रहेगा।।। क्यूंकि  ये दोमुंहा समाज चाहे जितने बड़े दावे करे मगर वो है आज भी अन्दर से जानवर है।सारे  लड़के गंदे नहीं मगर जो गंदे हैं वो बहोत गंदे हैं।।।
        और उन्हें और ज्यादा गन्दा बनाने का काम भी कुछ औरतें ही करती हैं इससे इंकार करना उचित नहीं।
      
 
       दिक्कत ये हैं की इस मसले पर भी हम बाँट जाते हैं। हम सारी  बात को लेडीज वर्सेज जेन्ट्स  कर लेते हैं।
हमको ये बात भी माननी पड़ेगी की जो दुष्ट लड़के हैं वो हर हाल में दुष्ट रहेंगे . वो परदे में निकलने वाली लड़की पर भी फब्ती कसेंगे। और हमे ये बात भी माननी पड़ेगी की की लड़कियों का भड़काऊ पहनवा भी लोगों को कहीं न कहीं उकसाता  ज़रूर है। जो लोग इस तर्क से सहमत नहीं हैं वो जान लें अगर ऐसा न होता तो करीना और कैटरीना  के एक आइटम डांस की कीमत करोड़ों में न होती .  कोई मुझे आइटम डांस का उद्देश्य बताएगा ? क्या हम कुच्छ पैसों के लिए समाज में गन्दगी नहीं फैला रहे ? (शायद इसे ही  लोग आधुनिकता  कहते हैं ) .  फर्क पड़ता है।  अगर ऐसा न होता तो  ऋषियों और मुनियों की की तपस्या भंग करने के लिए अप्सराओं का  नृत्य न होता। जो गाने कभी बड़े लोग गाने में शर्म महसूस करते उसे आजकल के बच्चे माँ बाप के सामने गाते हैं। और इसमें हमें खुद के मॉडर्न होने का गर्व  होता है। अश्लीलता को हमने शायद आधुनिकता समझ लिया है।  आप लोगों को लगा न की मैंने कर दिन लड़कों वाली बात। यही दिक्कत है। मै  बस समस्या के बुनियाद की तरफ जा रहा हूँ।
ये बात सच है की जो अच्छे लोग हैं वो बुरे काम नहीं करेंगे। मगर शायद बुरे लोगों को और बुरा बनाया जा सकता है।।।

29/12/2012 क,  अमर उजाला  अख़बार में ये न्यूज़ देखिये 
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इलाहाबाद। मशहूर पांडवानी गायिका तीजन बाई का कहना है कि लड़कियों से सामूहिक दुराचार करने केआरोपियों का सिर हाथी के पांव से कुचलवा देना चाहिए। ऐसे लोगों के लिए फांसी की सजा काफी कम है। तीजन का मानना है कि सजा ऐसी होनी चाहिए जिससे दुराचार करने वाले ऐसा सोचने से भी डरें। शुक्रवार को इलाहाबाद पहुंची तीजन ने पत्रकारों से बातचीत करते हुए लड़कियों और अभिभावकों को भी नसीहत दी। उन्होंने कहा कि आजकल लड़कियों का पहनावा पूरी तरह से पश्चिमी संस्कृति पर आधारित हो गया है। अभिभावक इसके लिए दोषी हैं। वह इस ओर ध्यान नहीं दे रहे हैं कि उनकी बेटियां कैसे कपड़े पहन रही है। यह उचित नहीं है। भारतीय संस्कृति और परंपरा को अब पश्चिमी देश अपना रहे हैं जबकि भारतीय पूरी तरह से पश्चिम का अंधानुकरण कर रहे हैं।
दिल्ली में हुई दुराचार की घटना पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए तीजन बाई ने कहा कि यह एक सामाजिक बुराई है जिससे पूरे समाज को मिलकर लड़ना होगा। यदि दूसरों के साथ घटी घटना की ओर से हम मुंह मोड़ लेेंगे लोग इससे दुराचारियोें का हौसला बढ़ेगा। तीजन का मानना है कि भारतीय संस्कृति की जड़ें काफी गहरी हैं। मगर दुखद है कि युवा पीढ़ी अपनी संस्कृति को भूल रही है। पांडवानी गायिका पर तीजन बाई का कहना था कि उन्होेंने इस कला को आगे बढ़ाने के लिए दो सौ गायक तैयार किए हैं जो प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे हैं। उन्होंने पारंपरिक गायन और संगीत में आधुनिकता के मेल को भी अनुचित बताया।""
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 मै  बस इतना कहना चाहता हूँ जालिमों को फांसी देने में सरकार आनाकानी न करे .
और अपनी गलती मानने में हम आना कानी न करें . न्यूज़ चैनल वाले भी  कभी कभी वही न्यूज़ बार दिखाते हैं जो लोगों को बुराई के लिए उकसाती है।
किसी लड़की के पहनावे  के ढाल में लड़के अपनी गन्दी मानसिकता को और शैतानी हरकत को जस्टिफाई नहीं कर सकते।वो कुछ भी सोचने से पहने एक बार अपने घर के मारे में  ज़रूर सोच लें, उनकी कोई बहन न हो मगर माँ तो होगी। मगर कुछ लोग माँ की  भी रेस्पेक्ट नहीं कर सकते और ऐसे लोगों जिंदा जल देना हिये या फंसी दे देना चाहिए।
लड़कियां ढंग के कपडे पहनेंगी तो उनकी सुन्दरता कम नहीं हो जाएगी।
हमें ये लड़ाई जाति , धर्म और लिंग भेद से ऊपर उठकर लड़नी पड़ेगी।
वो  पुरुष भी दोषी है जो औरतों की इज्ज़त नहीं करता और महिला भी दोषी है जो अपने प्रेमी से अपने पति की हत्या कराती है।
आज सरकार को , शिक्षकों को, अभिभावकों को सबको मिलकर बच्चों में कुछ संस्कार भी डालना
चाहिए। आज के अभिभावकों को बस इससे ही मतलब है की उनका बेटा किसी भी तरह सरकारी नौकरी पा जाये और वो भरी भरकम दहेज़ ले . (और दहेज़ कम मिलने पर अपनी बहू को जला भी सकते हैं , और खुद की बेटी के साथ  हो जाये तो औरों को दोष) । यहाँ भी आम इन्सान ही क्राइम कर रहा है। हमारा बनाया समाज हमें ही रुला रहा है .

                 

   शायद आप लोगों को मेरी बात बुरी लगे।।।।

काश लोग लोग इन चार लाइनों को समझ सकें ...



     " तुम और मै  से अगर हम , हम बन जाएँ तो कुछ बात बने 
     अपने अपने हिस्से  भर का   सुधर जाएँ तो कुछ बात बने
    इल्जाम देने भर से कुछ बदलने वाला नहीं मेरे दोस्तों 
    हमारी सोच भी  अगर  बदल जाये तो कुछ बात बने।"








     
    

 

गुरुवार, 19 अप्रैल 2012

NIRMAL BABA KI JAI !

मै प्रतिदिन पैदा होते नए भगवानो और बाबाओं से बहोत चिढ़ता हूँ मगर मै निर्मल बाबा की तारीफ करना चाहूँगा. अब आप लोगों को थोडा आश्चर्य होगा. इसमें ज्यादा परेशान होने की जर्रोरत नहीं है.
   सबसे पहले तो मै आपको ये बता दूं की निर्मल बाबा उन बाबाओं में से नहीं है जो धर्म का कारोबार करें, अथवा लोगों को कुछ जादू या चमत्कार दिखाकर छोटी सोच वाले लोगों को हतप्रभ करें. निर्मल बाबा उन सरे बाबाओं से कहीं ज्यादा महँ और समझदार हैं. बात को और अच्छे से समझाने के लिए मै एक एक करके सारे बिन्दुओं को समझाता हूँ की क्यूँ  मैंने  निर्मल बाबा को ज्यादा समझदार कहा .
१-  किसी भी बिजनेस को करने के लिए हमें मनी, मैन, मशीनरी और मैनेजमेंट की आवश्यकता होती है. मगर निर्मल बाबा ने केवल मैनेजमेंट का प्रयोग किया, और मैन तथा मनी को उन्होंने  मैनेजमेंट के बल पर बना लिया. अन्य बाबाओं की तरह उन्होंने की किसी चमत्कार और जादू का सहारा भी नहीं लिया.  तो इन्हें  मैनेजमेंट गुरु की उपाधि देनी चाहिए.
२- दूसरी बात आजकल के लगभग बाबा किसी विशेष धर्म अथवा सम्प्रदाय के के आधार पर अपने को खड़ा करते हैं. उनकी समस्या निराकरण विधि किसी न किसी धर्म पर आधारित होती है , परन्तु निर्मल बाबा समस्याओं को हल करने का जो तरीका बताते हैं वो कोई भी आसानी से कर सकता है. ये भी निर्मल बाबा की एक नीति है. इस प्रकार की नीति अपना कर निर्मल बाबा हर धर्म तथा संप्रदाय के लोगों को अपना भक्त बना सकते हैं. ये उनकी व्यापारिक दूरदर्शिता को दर्शाता है .
३- एक सबसे मुख्य बात , निर्मल बाबा ने कभी भी किसी धर्म और भगवान के बारे में नहीं बोला जिससे की किसी की भावनाएं आहत हों. उन्होंने ने शायद सरे पुराने बाबाओं पर काफी शोध करने के बाद अपना अजेंडा बनाया होगा. उन्होंने NE झबरे बाल वाले साईं बाबा की तरह अपने मुंह से शिवलिंग नहीं निकाला. अब ये बात तो मेरी समझ में नहीं आई की इतने चमत्कारी बाबा खुद अपनी भविष्यवाणी गलत सिद्ध कर गए और अपनी बताई तिथि से कुछ साल पहले ही दुनिया छोड़ गए. ये बात शायद निर्मल बाबा ने भी महसूस किया होगा इसलिए वो इस तरह के बातों से दूर हैं. निर्मल  बाबा ने रामदेव की तरह योग का भी सहारा नहीं लिया. क्यूंकि महीने भर बिना खाए पिए स्वस्थ रहने का दावा करने वाले रामदेव बाबा दिल्ली में अनशन के दौरान मात्र तीन दिन में लुंज पुंज हो गए थे. निर्मल बाबा जानते हैं की इस तरह की विधियाँ ज्यादा कारगर नहीं. इसलिए उन्होंने ऐसी विधि अपनाई जो हर परिस्तिथि एवं देश काल में की जा सकें. उन्होंने हर इन्सान को वही करने को कहा जो वो करने की इच्छा रखता हो तथा   कर सकता है. जैसे शुगर  वाले मरीज को चीनी  खाने को कहा.
४- और अंत में निर्मल बाबा की वो बात जिसने मुझे सबसे ज्यादा प्रभावित किया. वो ये की उन्होंने ने दिखा दिया की मूर्खों को अपने इशारों पर नचाना कितना आसान होता. अभी तक हमारे नेताओं, धर्मगुरुओं, तथा बाबाओं ने लोगों को देश, जाती, धर्म आदि के आधार पर नचाया. मगर वो किसी विशेष धर्म अथवा संप्रदाय विशेष में ही अपनी पहचान बना पते हैं .मगर  निर्मल बाबा ने सिद्ध किया की लोग तो सोचने से कहीं  ज्यादा मूर्ख हैं. उन्होंने तो न मौलाना बुखारी के नीति अपनाई, न विनय कटियार की, न तो बाबा रामदेव की तरह उन्होंने काले धन का नाम लेकर नेताओं से दुश्मनी मोल लिया, न तो उन्होंने ने राज ठाकरे की तरह किसी विशेष प्रदेश का विरोध कर अपने को सीमित किया.  निर्मल बाबा तो हर तरह के लोगों के लिए हैं .

अंत में मै यही कहना चाहूँगा की की निर्मल बाबा हमारे सभी बाबाओं , नेताओं, व्यापारियों से श्रेष्ठ हैं. उनके विचार से कोई भी व्यक्ति लाभ उठा सकता है. वो सभो जाती तथा धर्म के लोगों से उनकी कमी का दसवा हिस्सा लेने को तैयार हैं.....
अब अगर निर्मल बाबा का व्यापर थाप होता है तो उनमे उनका कोई दोष नहीं. क्यूंकि ये तो हमारी फितरत में है की हम किसी को बहोत दिन तक एक ही स्थान पर नहीं रहने देते. हर FRIDAY को हमारा बेस्ट एक्टर बदल जाता है, एक मैच के  जीतने पर हमारे क्रिकेटर भगवान बन जाते हैं, और अगर हार गए तो हम उन्हें जूते मरने में भी गुरेज नहीं करते . हम ३ महीनो के लिया हम अन्ना जी गाँधी बना सकते हैं और बाद में हमारे नेता उन्हें भ्रष्ट कह सकते हैं... तो ऐसे देश और परिस्तिथियों में अगर निमल बाबा का व्यापर ५-६ साल चल गया तो बहोत है....
          जय निर्मल बाबा....

रविवार, 11 दिसंबर 2011

Difference Between "KARM" and "KARMKAND"

अपने पुराने ब्लॉग में लिखा था की ईशवर और धर्म में क्या अंतर है. जब हम केवल धर्म को सोचते हैं तब शायद ईशवर को भी खो देते हैं क्यूंकि धर्म में लोग सुविधानुसार परिवर्तन करते रहते हैं.
फ़िलहाल मेरा आज का विषय है "कर्म तथा कमर्काण्ड में अंतर   " . साधारण रूपसे सोचते पर हमें लगता है की कर्मकांड का अर्थ ही धरम अर्थवा कर्म होता है. हाँ ये बात सही है की धरम का अनुसरण करने के लिए हमें कुच्छ कर्मकांड करने होते है, परन्तु हम ये बात भूल जाते हैं की कर्मकांड किसी अच्छे परिणाम के लिए बनाये जाते थे. अगर कोई कर्मकांड आज के परिवेश में उचित नहीं तो उसे त्याग देना ही बेहतर होगा, लेकिन लोगों ने पैसे के लालच में कर्मकांड को ही धर्म करार दिया है. 
कोई भी धर्म हो- हिन्दू , मुस्लिम, सिख, जैन या कोई और, सभी धर्मों में हम अगर gahrai में जायेंगे तो हम ये पाएंगे की कोई भी कर्मकांड के पीछे एक अच्चा मकसद होता था. कोई कर्मकांड करने से हमर मन सुद्ध होता था. परन्तु आज us कर्मकांड के मकसद को भुलाकर हम बस उसे
फ़र्ज़ मान करकर करते हैं.
उदाहरण के लिए मुस्लिम  धर्म में क़ुरबानी का बहोत मत्तव है, जो इस बात को दर्शाता  है की अल्लाह को मान  ने WALA अल्लाह की वास्ते अपनी सबसे प्यारी  को भी कुर्बान कर सकता है. और  ये परम्परा सारे  संसार में मनाई जाती है जिसमे बकरे की क़ुरबानी करके उसके तीन हिस्से किये जाते हैं जिसमे से एक hissa खुद अपने लिए, एक hissa रिश्तेदार और doston के लिए तथा teesra hissa गरीबों में baantne के लिए होता है. लेकिन हम ये भूल जाते हैं इस असली मकसद क्या है..असली मकसद ये है अल्लाह चाहता है की हम उसके नादों का भी ख्याल रखें  जिसमे हमारे रिश्तेदार, दोस्त तथा गरीब लोग भी आते हैं. वो आपसे से बकरा नहीं मांगता . लेकिन लोगों को लगता है की क़ुरबानी के दो दिन पहले दो लाख का बकरा लेकर उसकी क़ुरबानी करने से अल्लाह खुश हो जायेगा. हरगिज़ नहीं, क्यूंकि आप गरीबों को तो दूर से भगा देते हो. आप समाज में अपनी  वाह वाही   के लिए लाख रुपये का बकरा खरीदते हो मगर  आप किसी भी मौके पर गरीबों की दिल से madad नहीं करते ,आप AMEERON  के बीच तो लुटाते  हो मगर गरीब को एक रुपया देने में jaan जाती है. अल्लाह jayada खुश होगा अगर आप गरीब को एक बकरी दान कर दोगे. मगर aapne तो quraan को rata है उसकी baton को na samjha है na तो अपने jeewan में utara है. आप रोज़ा रखते हो, रखना चाहिए, फ़र्ज़ है, मगर एक महीने रोज़ा रखने के बाद भी आपको अगर गरीबों और bhookhon की तकलीफ नहीं महसूस होती तो क्या फायदा. रोज़ा रखने के बाद भी आप झूठ, फरेब,बुरे , गन्दी आदतों से नहीं बचते तो आपका रोज़ा अल्लाह नहीं मानेगा. कुरान को गौर से समझो उसने भूखा रहने को रोज़ा नहीं कहा है. रोज़ा का मतलब बुरे से परहेज़, अगर बुरे नहीं छोड़ सकते तो भूखा   रहने को अल्लाह ne खुद मना  किया है.
हुज़ आपको इस बात का मौका देता है की अगर आप दिल से माफ़ी मांगना कहते है, बुरे को वास्तव में छोड़ना चाहते हैं तो अल्लाह आपको तौबा करने का मौका देता है. मगर यहाँ लोग हज करने बाद दुनिया की तिकड़म और जालसाजी में जुटे रहतें हैं, शायद उन्हें लगता है हज में जाने का मतलब ही gunah माफ़ हो जाना है. काश वो समझते की अगर आपके मन में बुरे है तो आपका हज भी नहीं मन जायेगा. लोग dadhi रखा के समझते हैं की अल्लाह के करीब हैं, वो shaayad भूल जाते हैं की अल्लाह को

अब अगर हिन्दुओं की बात करें तो वहां भी यही कहानी . किसी भी मंदिर में जाओ वहां नारियल, लड्डू सबका का प्रसाद चढाया जायेगा.  शायद हम भूल जाते हैं भगवन को ये sab kuchh नहीं चाहिए . आप बस उसके बन्दों की सेवा करो गरीबों की मदद करो, वो ज्यादा बेहतर है. मंदिर या मस्जिद एक ऐसा स्थान होता है जहाँ हम सुकून से ऊपर वाले को yaad कर सकें.   हर मौके पर डी.J. लगाकर डांस करने से भगवन नहीं खुश होगा. हमे जब भी मौका मिलता है  एक नया भगवन  गढ़ लेते हैं. हम चीजों को भगवान्  बना देते हैं.

सोचने वाली बात ये है की अगर हम हमेश चाँद और सूरज को भवन मानकर उसकी ही पूजा करते रहते तो क्या चाँद पर पहुँचने की बात सोची जा सकती थी. आज हमें पता है की चाँद एक उपग्रह है.अगर इंसान अपनी कोशिश न करता तो आज क्या चाँद पर उसके कदम पड़ते ? कभी नहीं ?
लेकिन हम शायद भगवन को भी बेवक़ूफ़ बनाए की कोशिश करते रहते हैं. हमें लगता है की इंसानों  का दिल दुखाकर अगर हम भगवान् की पूजा करेंगे  तो वो खुश हो जायेगा. चाहे गीता हो या कुरान सबन यही कहा है की भगवान आपकी भावनाओं को देखता है कर्मकांडों को नहीं. मगर लोगों ने पैसा कमाने के चक्कर में साडी मानवता को गुमराह किया. कोई अपनी पूजा करवाना चाहता ही तो कोई अपना महल खड़ा करना चाहता है. और वो बहोत सारे आडम्बर बनाकर हमें बेवकूफ बना रहे हैं...  
हम आज भी बिल्ली के रास्ता काटने पर काम का बनना या बिगड़ना तय करते हैं, शायद हमें हमें ओने कर्मों और भगवान पर कम भरोसा है...ये मेरी अपनी निजी सोच है अगर आप में से किसी को मेरी बात बुरी लेगे तो मुझे क्षमा करियेगा...



रविवार, 14 अगस्त 2011

MERE PAYARE WATAN HIND KE LIYE...


बात बहोत हो चुकी है हिन्दू और मुसलमान  की
आओ  बात करें हम सब मिलकर  हिदुस्तान की

हम सोचें की दिया क्या  हमने अपने देश को
कितने फायदे  में रहे हैं हम अपना ईमान  बेच के

मंदिर मस्जिद के नाम पर हम कब तक तोड़े जायेंगे 
                             जाती पातीं के नाम पर हम कब तक खून बहायेंगे

एक पिता की हम संताने जब आपस में ही टकरायेंगे
फिर अपने  दुश्मन  से  घर अपना कैसे बचायेंगे

अगर पुरानी गलती को हम बार बार दोहराएंगे
अपने ही  हाथों से फिर हम अपना घर जलाएंगे

एक साथ मिलकर जब हम देश को आगे बढ़ाएंगे
उन वीर शहीदों के सपनों सा  भारत देश बनायेंगे



 
 


बुधवार, 10 अगस्त 2011

AAJ KA DAUR...

 मत पूछो इस दुनिया में मैंने क्या क्या देखा है
  रावण की इस   नगरी में राम को जलते देखा है

रिश्तों के देखे बाज़ार, mamta को bante देखता है
jo रखवाले थे उनके द्वारा मैंने घर लुटते देखा है

 और कहूँ क्या इससे ज्यादा मैंने क्या क्या देखा है
 मुर्दों की इस बस्ती में  जिन्दों को जलते देखा है

 कोई किसी का नहीं यहाँ पर कैसे दुश्मन कैसे दोस्त
 मतलब के सांचे में  bas रिश्तों को ढलते देखा है

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