मत पूछो इस दुनिया में मैंने क्या क्या देखा है
रावण की इस नगरी में राम को जलते देखा है
रिश्तों के देखे बाज़ार ममता को बिकते देखा है
सच कहने वालों को अक्सर सूली पर चढ़ते देखा है
कोई किसी का नहीं यहाँ पर कैसे दुश्मन कैसे दोस्त
मतलब के सांचे में बस रिश्तों को ढलते देखा है
और कहूं क्या इससे ज्यादा मैंने क्या क्या देखा है
मुर्दों की इस बस्ती में जिन्दों को जलते देखा है
By : Ansar
Aap kavita bhi likhte hai ye to mujhe pata bhi nahi tha.......
जवाब देंहटाएंAny way nice poem........ Keep it on.